

शिव दयाल मिश्रा
लेखा जोखा रखने वाले लोग दिसम्बर का महीना शुरू होते ही वर्ष के बीते महीनों का हिसाब-किताब लगाना शुरू कर देते हैं कि इस वर्ष में क्या-क्या घटना घटी और क्या नफा-नुकसान और क्या-क्या नई परिस्थितियां सामने आई। अच्छी-बुरी घटनाओं पर नजर डाली जाती है। चालू वर्ष में विकास की चलती रफ्तार को कोरोना महामारी ने ऐसा अवरोध लगाया कि वह अभी तक अपनी रफ्तार नहीं पकड़ पाया है। रफ्तार पकडऩा तो दूर अभी तक दुनिया में इस बीमारी का ओर-छोर ही पता नहीं चल पा रहा है। कभी बीमारी अपना भयावह रूप दिखाती है तो कभी कम-ज्यादा हो जाती है। मगर इस महामारी से मुक्ति अभी दूर की कौड़ी नजर आ रही है। पहले लक्षणों के आधार पर इस बीमारी का पता चलता था। मगर अब तो बिना लक्षणों के भी यह बीमारी अपना मुंह बाए सामने खड़ी हो जाती है। इस बीमारी ने कितने ही दिग्गज लोगों और हस्तियों को निगल लिया है। जिन लोगों के बारे में कभी सोचना नहीं था कि इतने जल्दी वे हमसे अनंत में दूर चले जाएंगे। वह सब हो रहा है। कई लोगों का तो चले जाने के बाद पता चलता है। कितने ही कैसों में तो जाने वालों के परिजनों को भी इस तरह एहसास नहीं होता। सन् 2020 तो हर तरह से डरावना ही रहा है। भले ही कहने को कहा जाए कि यह नए अवसर प्रदान कर रहा है। मगर यह तो हमारे हाथों से प्रत्यक्ष अवसर भी छीन रहा है। अब दिसम्बर का महीना शुरू हो गया है और सन् 2020 की विदाई होने वाली है। मगर पिछले दिनों का जो मंजर दिमाग में घूमता है उसका एहसास होते ही लगने लगता है कि अभी न जाने कितने लोगों की विदाई होने वाली है। हंसती-खेलती जिंदगी कुछ ही दिनों में शांत हो रही है। हालांकि सरकार इसकी रोकथाम के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। मगर कुछ तो जनता की भी लापरवाही है कि वह सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करती और कोरोना के शिकंजे में फंसती चली जा रही है। जिस तरह से पिछले दिनों जवान और सुविधा सम्पन्न लोगों को भी कोरोना महामारी से बचाया नहीं जा सका। उसे देखते हुए तो लगने लगा है कि हम में से कौन वर्ष 2020 को विदा करेगा और किसे वर्ष 2020 विदा कर जाएगा। ईश्वर रक्षा करे!
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