

शिव दयाल मिश्रा
प्रारंभ में जयपुर को धर्मनगरी छोटी काशी के नाम से जाना जाता रहा है। क्योंकि यहां जगह-जगह वास्तु के हिसाब से धार्मिक स्थल बनाए गए थे। बाद में अंग्रेजों के जमाने में किसी अंग्रेज अफसर के जयपुर आगमन पर उसके स्वागत सत्कार में पूरे जयपुर को पिंक (गुलाबी) रंग से रंग दिया गया। तब से इसका नाम पिंकसिटी या गुलाबी नगर हो गया। सरकारी आदेश के अनुसार इसकी चार दीवारी में मकान के बाहर का हिस्सा यानि कि बाजारों से दिखने वाला हिस्सा गुलाबी (गेरुए) रंग से रंगा जाता है। सलीके से हुई बसावट के कारण पिंकसिटी का नाम दुनियाभर में मशहूर है। कोई भी विदेशी नागरिक भारत भ्रमण के लिए आता है तो वह जयपुर देखने जरूर आना चाहता है। जयपुर को देखने बिना वह अपनी भारत यात्रा को अधूरी ही मानता है। यहां के चौड़े-चौड़े बाजार और करीने से बनी हुई दुकानें बरबस ही सैलानियों का ध्यान आकर्षित कर लेती हैं। ऊपर से यहां की पुरातात्विक हवेलियां और पर्यटन स्थल अपने आप में बहुत कुछ कहते हैं। मगर विडम्बना देखिए, यहां कई ऐसे स्थान हैं जहां बीच चौराहों और मुख्य स्थलों पर मांस की दुकाने जिनमें खुलेआम कटे हुए बकरे और खाल उतारे सिर कटे मुर्गे यहां-वहां लटके दिखाई देते हैं। मगर जयपुर रेलवे स्टेशन, सिंधी कैंप बस स्टैण्ड, पोलोविक्ट्री, चांदपोल गेट, मोतीडूंगरी रोड आदि ऐसे स्थान हैं जहां बाहर से आने वाले यात्रियों को बस और ट्रेन से उतरते ही ये सब देखने को मिलता है और हालत ये होती है कि शाम होते-होते तो इनके पास से गुजरते समय नाक पर रुमाल रखना पड़ता है। धर्म परायण लोगों को तो ये सब देखते ही घिन्न सी होने लगती है। नाक-भौं सिकोड़ते हुए उनके मुंह से अनायास ही निकल जाता है कि ऐसी है धार्मिक नगर छोटी काशी। ऐसा है गुलाबी नगर। सरकार को चाहिए कि जयपुर का जैसा नाम है और जैसा काम होने वाला है यानि स्मार्ट सिटी बनने जा रहा है तो इसकी गरिमा को ध्यान में रखते हुए मांस-मच्छियों की दुकानों के बारे में भी कुछ नियम-कायदे बनाए, जिससे यहां के निवासियों के साथ ही बाहर से आने वाले यात्रियों को उड़ती सड़ांध और लटकते मांस के लोथड़ों के दृश्यों से निजात मिल सके।
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